छंद- समानिका (वार्णिक)
पदांत- का
समांत- अर्ग
ध्यान हो निसर्ग का.
नर्क का न स्वर्ग का.
पंक में नहीं खिलें,
रूप है सदबर्ग का
है महत्व पाठ का,
कांड का न सर्ग का.
रोजगार जो मिले,
वाद हो न वर्ग का.
शब्द शुद्ध ही लिखें,
ज्ञान हो प्रवर्ग का.
बिंदु चंद्रबिंदु हो
संधि या विसर्ग का.
लोग न्यून जानते
मर्म मौन मर्ग का.
मर्ग- मृत्यु
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