16 जनवरी 2019

कर्म कर आलस्‍य तज तू (गीतिका)


छंद- माधव मालती
मापनी- 2122 2122 2122 2122
पदांत- की
समांत- असी
प्रदत्‍त पद्यांश- ‘कर्म कर आलस्‍य तज’

कर्म कर आलस्‍य तज तू, तोड़ छवि तू आलसी की.
जान कर अनजान मत बन, सीख लेले आरसी की.      

जो न कर पाये भलाई, क्‍यों बुरा है चाहता तू,
जुर्म से रिश्‍ते बनें कम, राह भूलें वापसी की.

गुड़ चना खायें नहीं, परहेज हो यदि, गुलगुलों से,
बात लंघन की हो’ करिए, बात दलिया-लापसी की.

हो नहीं पाता कभी, निष्‍णात बिन, अभ्‍यास कोई, 
है भरोसा लेखनी पर, बात क्‍यों हो जायसी की.

सीख बच्‍चे से मिले या, धर्मगुरुओं से मिली हो,
फर्क मत करना भले, हिंदी नहीं, है फारसी की.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें