शायद नये वर्ष में हमको
मिला इशारा.
खुशियों की सौगात मिली जब
खोला द्वारा.
अँगड़ाई ले उठे भूमिहर,
श्रमिक घरों से
सत्ता में जो चले जीतकर
नये परों से
अपना घर हो, राज्य, देश हो
या पड़ौस हो
कर न सके जो कल हो जाये
आज करों से
मिला प्रजा या ईश्वर से
संदेशा प्यारा.
नहीं समंदर आया
इंसानों के आड़े
हिमशृंगों पर झंडे उसने
ही हैं गाड़े
ऋतुएँ आईं बिन पाले भ्रम
कोई, पर क्यों
मानव ने धरती के जंगल
बाग उजाड़े
नववर्ष दुबारा.
प्रेम, प्यास, रिश्तों की दौलत,
अच्छी सोहबत
मिलतें है अवसर
सत्कर्मों ही की बदौलत
आश्वासन, प्रोत्साहन
पथ दर्शन जीवन में
देते ऊर्जा तभी बजे
खुशियों की नौबत
हो इसमें ही नफ़ा छिपा हो
कोई न्यारा.
अरुणाचल, हिमगिरि, गंगा-
यमुना का आँचल
पाँव पखारे सिंधु
पंक में महके शतदल
लहराये ध्वज अभय
धन्य गणतंत्र हमारा
रक्षा में सन्नद्ध शौर्य
त्रिबल सशस्त्र दल.
मेरा भारत है महान्
जादुई पिटारा.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें