28 जनवरी 2019

सूर्यमुखी हूँ इसीलिये (गीतिका)

छंद- सार
विधान- 16, 12 अंत 22 (वाचिक)
पदांत- जीवन में
समांत- एरे

चलूँ संग मैं रहूँ संग मैं, बस तेरे जीवन में.
डगर वही हो, साथ साथ हो, तू मेरे जीवन में.

खिलूँ जगे तू, रहूँ सखे मैं, लिपट तेरे तन मन से,
असर नहीं बिन तेरे मेरा, जो हेरे जीवन में.

जैसे मीरा के श्रीकृष्‍णा, राधा के घनश्‍यामा,
वैसे ही तुमको अंतर्मन, नित हेरे जीवन में.

जब जब दूर हुए आँखों से, कुम्‍हलाई मुरझाई,
मन रोया, आँखें रोई ग़म घन घेरे जीवन में.   
  
सूर्यमुखी हूँ इसीलिये प्रिय, जग जाने तुझसे ही,
तुझको ही माना है प्रियतम, बिन फेरे जीवन में.  

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