21 जनवरी 2019

आकाश में उड़ती पतंगें (गीतिका)

छंद- हरिगीतिका
मापनी- 2212 2212 2212 2212
पदांत- रहीं
समांत- अरा


आकाश में, उड़ती पतंगें शान से, फहरा रहीं.
इठला रही, हैं सोच कर वे झूमती, इतरा रहीं.

बच्चे, बड़े, अनजान भी, सब हैं बड़े, उत्साह में,
कितने रँगों, में उड़ रहीं, मिल कर गले, मगरा रहीं.

उलझीं कभी, या कट गईं, पर झूमतीं, उड़ती रहें,
मिल कर सभी, से झुंड में, मदमस्त वे, मँडरा रहीं.

मेले दुकेले में मिलें, मिलते गले, जैसे सभी,
वैसे उलझ, कर सब मिलें, फिर छूट कर, कतरा रहीं.

जब भी कटें, वे दर्द दे, जायें सभी, दिग्मूढ़ हों,
बेटी विदा, होती घरों, से आँख ज्यों, पथरा रहीं.

जीवन पतँग, है डोर साँसे हाथ में, है जिंदगी,
कोई कहाँ, तक साथ देगा सोच कर, घबरा रहीं.

सबको अकेले पार जाना, छूट कर संसार से,
‘आकुल’ पतंगे जिंदगी, का सच यही बतरा रहीं.

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