छंद- मरहट्ठा माधवी
पदांत- याद है
समांत- अड़ीज्वर में दलिया और मूँग की, सौंधी खिचड़ी याद है।
घी में पड़े हुए कपड़े से, रोटी चिपड़ी याद है ।1।
उधड़े बंदरटोपा, स्वेटर, शाल, रजाई, धूप भी,
सर्दी में दिन भर जलती वो, टूटी सिगड़ी याद है ।2।
खेले खो खो, छिपन-छिपाई, गिल्ली डंडा खेल भी,
कभी कबड्डी में ना जीते, मारी टँगड़ी याद है।3।
लाते
भर जेबें झड़बेरी, छिप कर खाते बाँट कर,
खेलों
में गुलामडाली की, धौलें पिछड़ी याद है ।4।
गर्मी की वो छाछ राबड़ी, उमस, मसहरी, लाय सब ,
कभी
घमोरियों में मुल्तानी मिट्टी रगड़ी याद है।5।
होरी पर गाते रसिया पर, सब ठंडाई भाँग पी,
चौपालों
में बैठ ताश की, खेली छकड़ी याद है।6।
सब्जी और किराना मिलता, था बदले में अन्न के,
बनिया
जो करता जल्दी से टेढ़ी तखड़ी याद है ।7।
रखते
देखा माँ को कुछ-कुछ, कभी ताख या नाज में,
जब भी बापू मदद माँगते, खुलती हटड़ी याद है ।8।
नेहरू बास्कट, गाँधी टोपी, बापू की पहचान थी,
त्योहारों पर सदा पहनते मैली पगड़ी याद है।9।
चेचक
से भाई बिछड़ा, इक बेटी बिछड़ी याद है।10।
लोग अंधविश्वासों की अब, ‘आकुल’ भेंट चढ़ें नहीं,
खालीपन तो भर जाता पर लगे थेगड़ी याद है।11।
ओह ! कितनी यादें रहती हैं जेहन में, जिसे समय नहीं मिटा पाता
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीया
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