गीतिका
आधार छंद- आल्ह
खुशी-उदासी, जीवन के क्रम, सरल-कठोर समय का फेर।
डरना कैसा, दुनिया चलती, जीवन-मृत्यु, कभी न टेर।
आग भले ही सूरज रखता, ले प्रकाश शीतल है चाँद,
रहे हरी-भरी वसुंधरा, मौसम आते देर-सवेर।
कौन चाहता आग लगे पर, जल कर बनता स्वर्ण बिठूर,
भभका करते हैं दावानल, जंगल बनें राख के ढेर।
करे संतुलन प्रकृति धरा भी, पहल करे रख मानव धीर,
जन-जल-जंगल बचें जरूरी, बस अब मानव करे न देर।
जीवन है अनमोल सखे यह, ‘आकुल’ का कहना अकसीर,
हो न प्रदूषित हवा कभी भी, देर हो पर हो न अंधेर ।
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