गीतिका
छंद- चौपाई
अपदांत
समांत- आया
जीवन है चंचल जग माया।
छाया है सुख-दुख सरमाया।
सूरज चंदा तारे चलते,
ग्रंथों ने यह ही बतलाया।लेकिन पृथ्वी चलती धुर पर,
मानव अब तक था भरमाया।
सभी सर्प जहरीले होते,
डरना इनसे यह सिखलाया।
प्रारब्धों का देकर चक्कर,
मानव कलियुग को ले आया।
जब-जब भ्रष्टाचारी जग ने,
झूठा भी सच कर दिखलाया।
भरमाये ‘आकुल’ ने भी जब,
सच बोला तो धोखा खाया।
कितना जीना धीरज रख कर,
उसको भी खोना जो पाया।
सोया भूखा ना इक दिन भी
जी लेंगे मन को समझाया।
सोचा गंगा जा कर पहले,
धो आएँ यह कलिमल काया।
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