गीत
जगत् में कान्हा पुन: अवतार लो आओ
किस तरह जीते हैं जीवन देखने आओ।
नंद केआनंद भये घर-घर उसी तरह
आनंद में डूबें सभी बंसी से रिझाओ।जगत् में कान्हा पुन:..........
संहार करना है पुन: अरिदल बढ़े हैं आज,
देखना चारों तरु दिखेंगे जंगल राज,
नारियाँ फिर लुट रहीं चहुँ ओर हाहाकार,
इक और महाभारत से हैं आसार लगते आज,
रुप फिर विराट् अपना जग को दिखाओ ।
जगत् में कान्हा पुन:..........
आज फिर संदेश कोई गूँजना होगा,
अरिदलों के सब गढ़ों को फूँकना होगा,
पापियों की क्या करें गणना असंख्य हैं,
एक एक कर इन्हें अब ढूँढ़ना होगा,
ढूॅढ़ कर इन पर सुदर्शन चक्र चलाओ।
जगत् में कान्हा पुन: ..........
मोह माया में घिरे हैं चैन से जीना,
आप सा योगी बनें, कैसे ये जाने ना,
योग माया से पुन: आकाशवाणी हो,
करें लीलाएँ वो न्हिें सुनके थकते ना,
हो शत्रु भयाक्रांत, धर्मध्वजा फहराओ।
जगत् में कान्हा पुन:..........
-आकुल
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