गीतिका
छंद- चौपाई
पदांत- 0 समांत- आईधन्य व्याकरण भाषा माई।
महिमा चोरों की करवाई।
मन हो तन हो धन हो चाहे,
चोर-चोर मौसेरे भाई।
पकड़ा जाये चोर नहीं तो,
साहूकार रहे हरजाई।चोरी से जाये पर करता,
हेरा फेरी से भरपाई।
चोरी भी ऊपर से करते,
सीनाजोरी से ढीठाई।करें चोट्टे और उचक्के,
छोटी मोटी हाथ सिकाई।
मोषक, खनक साहसिक होते,
सेंध लगा कर करें सफाई।
नीम-करेले से कुछ होते,
कुंभिल भी करते चंटाई।
कृष्णा तुमने की लीला पर,
माखनचोरी तो कहलाई।
बच्चों से कहता है ‘आकुल’
खेल न खेलें चोर-सिपाई।
भाषा माई- मातृभाषा , कुंभिल- काव्य चोर, सिपाई- सेपोय (अंग्रेजी) से बना है ‘सिपाही’ इसलिए तुकांत के लिए अपभ्रंश ‘सिपाई’ का प्रयोग किया है । जैसे ब्रजभाषा में बहू को भऊ कहने का चलन है।
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