29 अगस्त 2022

पीछे न देखें वीर

गीतिका
छंद- तोमर (सम मात्रिक) 
मापनी- 2212 221 
पदांत- 0 
समांत- ईर
 
पीछे न देखें वीर ।  
आपा न खोते धीर ।  
    कर्मठ जुझारू लोग,
    बनते रहे हैं मीर ।   
राजा बने हैं रंक,
लुटती रहीं जागीर । 
    होता समय का फेर, 
    कहते कई तकदीर । 
अकसर सभी वाचाल, 
फैंकें हवा में तीर । 
    औषधि जरूरी क्‍योंकि, 
    हरती रही  है पीर । 
करता नहीं जो अर्ज,
बनता न दावागीर । 
    भरता नहीं जो कर्ज, 
     फटता उसी का चीर
‘आकुल’ कहे जो बात
होती सदा अकसीर ।

 

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