गीतिका
छंद-
तोमर (सम मात्रिक)
मापनी-
2212
221
पदांत- 0
समांत- ईर
पीछे
न देखें वीर ।
आपा
न खोते धीर ।
कर्मठ
जुझारू लोग,
बनते
रहे हैं मीर ।
राजा
बने हैं रंक,
लुटती
रहीं जागीर ।
होता
समय का फेर,
कहते
कई तकदीर ।
अकसर
सभी वाचाल,
फैंकें
हवा में तीर ।
औषधि
जरूरी क्योंकि,
हरती
रही है पीर ।
करता
नहीं जो अर्ज,
बनता
न दावागीर ।
भरता
नहीं जो कर्ज,
फटता
उसी का चीर
‘आकुल’
कहे जो बात,
होती
सदा अकसीर ।
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