गीतिका
छंद- माधुरी
मापनी- 2212 2212 2212 22
पदांत- है
समांत- एला
आया अकेला और जाना भी अकेला है।
चल जिंदगी चलती रहे चाहे झमेला है।कुछ काम भी करने पड़ेंगे अब अकेले ही,
अब देखना क्या पास है या दूर मेला है।धरती वही रस्ता वही रुकती कहाँ सड़कें,
दिखता न हो पर सत्य तो कड़वा करेला है।क्यों दूसरों की हम करें शिकवा शिकायत ही,
जब दर्द अपनों ने दिया तब रोज झेला है ।उस पथ पे तो रुकना नहीं ‘आकुल किसी हालत,
ठोकर लगे या जान के तुझको धकेला है।
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