17 अगस्त 2022

यह पत्‍नी ही है जो

गीतिका

छंद- सूचीमुखी (वार्णिक) 

विधान- छ: वर्णीय वर्णवृत्त, यति अंत में। गुरु के स्थान पर दो लघु अथवा दो लघु के लिए एक गुरु वर्ण वर्जित है। मापनी- सगण मगण (112 222) 

पदांत- है जो समांत- आती

सहलाती है जो।
महकाती है जो।

यह पत्नी ही है,
घर थाती है जो।
 

घर के रिश्तों से,
बँध जाती है जो

बहिना या भाभी,
बन आती है जो

दुनिया बेटी के,
गुण गाती है जो,

ममता की देवी,
कहलाती है जो

बन जाती है माँ,
फिर भाती है जो।

-आकुल

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