30 जून 2024

संदेशा दो गाँव शहर घर हर बसती को

गीतिका 
छंद-  सार्द्ध चापाई
विधान- प्रति चरण 24 मात्रा। 16, 8 (चौपाई +चौपाई की अर्द्धाली) पर यति। अंत दो गुरु से
पदांत- को
समांत- अती
बंजर होने से रोकें अब, हम धरती को।
संदेशा दो गाँव शहर घर हर बसती को।

हर पथ दोनों ओर लगें अब, हरित पट्टिका,
दूर अतिक्रमण करें बढ़ाएँ, अब सखती को। 
ग्राम नगर बाजार प्रदूषण, मुक्‍त करें अब, 
नंदन कानन बनें सजाएँ, अब जगती को।

अभियान चले, वृक्षारोपण, का बढ़ चढ़ कर,
बना बाँध, रोकें ना नदिया, अब बहती को।
करें प्रयोग, प्राकृतिक साधन, संसाधन का,
करें नियंत्रित, ग्रीन ऊर्जा से, भू तपती को।

इक जुट होकर, योग हेतु हम, सजग हुए हैं,
लगा वृक्ष, हर व्‍यक्ति सुधारे, अब गलती को।
मेघाकर्षण होगा, भू की प्‍यास बुझेगी,
सबको सुनना है, आकुल’ की, इस विनती को।

29 जून 2024

कढ़ी के संग पकौड़े

गीत
रस ले ले कर खाते हैं सब चाट पकौड़े।

पिकनिक, शादी, पर्वोत्सव, त्योहारों में,
दिनभर बनते ताजा भी: बाजारों में,
बौंडा, मिर्ची-बड़े, मँगोड़े, चटनी-भजिया,
गुजराती में मिलें कढ़ी के संग पकौड़े।
रस ले ले कर खाते हैं________

नाक पकौड़े, तोते जैसी हैं उपमाएँ।
उल्लू जैसी आँख, तोंद को ढोल बताएँ।
सपनों में घोड़े दौड़ाते रहते हैं सब,
बतरस दीवाने ज्यों सुनते गप्प गपोड़े।
रस ले ले कर खाते हैं__________

गोभी, आलू, मटर पनीर के बनें पकौड़े,
अमृतरसावली रबड़ी में छिपे मँगौड़े,
नसीराबाद कचौड़ा, बेढ़ई मथुरा की,
दिल्ली ख्यात भठूरे-छोले, ब्रेड पकौड़े।
रस ले ले कर खाते हैं__________

 

27 जून 2024

ये हिजाब या कोई मुखौटा या पत्ते का परदा है।

ये हिजाब या कोई मुखौटा, या पत्ते का परदा है।
सहमी छिपती फिरती है क्यों, नारी तू तो वरदा है।1

तू स्वभाव से ही श्रद्धा है, तुझे करें क्यों अपमानित,
वंशाध्यायी को समझें क्यों, लगी फसल में हरदा1 है।2

सीख सके तो सीख निडर हो, आत्मसुरक्षा का गुर तू,
बन जा फिर काली दुर्गा जो समझें तुझको करदा2 है।3

तुझको ना छिपना है अब तू, पढ़ इतिहासों के पन्ने,
धूल चटा उन नरदारों को, जो समझें तू गरदा3 है।4

आज नारियाँ पुजती हैं सब, शिक्षित हो कर जो निकलीं,
निर्झर बनना है आकुलतू नहीं घरों की नरदा4 है।5


1. हरदा- फसल में लगा एक रोग 2. करदा- कूड़ा-कर्कट 3. गरदा- धूल-मिट्टी 4. नरदा- नाली, पनाला

26 जून 2024

चलो शरबती घूँट भरें

गीत
शरबत पीने के ढूँढें हम, कई बहाने ।
महिफल हो पिकनिक हो होटल, या मयखाने। 
सभी बुलाते पीने को किस-किस की मानें । 

पीते तो गुस्‍सा भी हैं
पर रक्‍त चाप बढ़ने का डर
पड़े कलेजे को ठंडक अब
ऐसा कुछ करते हैं पर
आदत पड़ती बुरे व्‍यसन की 
जब जब जिसको भी देखा
क्‍लेश कलह से जीवन में 
बरबाद हुए कितने ही घर 
संस्‍कार बिगड़ें उनकी तो राम ही जाने,
चलो शरबती घूँट भरें और लंबीं तानें ।

बच्‍चों में उल्‍लास 
जमाने भर का देखा
कोल्‍ड ड्रिंक का चस्‍का 
नवपीढ़ी में देखा
कहाँ बुजुर्गों को
ठंडाई लस्‍सी छाछ
शरबत मिल जाए बस
खिल जाती है बाछ
खट्टी मीठी बातें तो बस नीबू जाने
चलो शिकंजी को ठंडाई समझें छानें ।  

25 जून 2024

प्रकृति के संग वे चलते रहे हैं

गीतिका
आधार छंद- सुमेरु (मापनीयुक्‍त मात्रिक छंद)
विधान- प्रति चरण 19 मात्रा। 10, 9 अथवा 12, 7 पर यति।
मापनी-  1222 1222 122
पदांत- रहे हैं
समांत- अते 

प्रकृति के संग वे चलते रहे हैं।
हवा के संग वे, बहते रहे हैं।

बचाते जल बनाते हैं सघन वन
पहल भी वे सदा, करते रहे हैं।

सजग होने लगे हैं योग के प्रति‍,
नवोन्‍मेषी वही बनते रहे हैं।

बनाते वे प्रदूषणमुक्‍त धरती,
कनक सा आग में तपते रहे हैं

चलें जो राह संघर्षों भरी ही,    
रचें इतिहास वे मिटते रहे हैं।    

22 जून 2024

कुछ मुक्‍तक

1
शब्‍द-शब्द नि:सृत रहता माँ, सदा रहे आशीष।   
जब जब भी आभास हुआ माँ, सदा रहे आशीष।
बहती रहे सदा अनुशासित, शांत काव्‍य की धार,  
बनूँ न चंट कीश सदृश माँ, सदा रहे आशीष।

2
मनुहार होता है मनोहर, प्रेम का शृंगार।
मधुमास में हो समर्पण से, प्रकृति का शृंगार ।
दान और अनुदान धर्म के, ज्यों आधार स्‍तम्‍भ, 
इनके बिना न हो जीवन में, धर्म का शृंगार।

3
आज बोलने सुनने, कहने, का नहीं है धर्म।
बुजुर्गों का अपमान भी करने में नहीं शर्म।
आक्रोश नव पीढ़ी में कहाँ, से आया हे राम!
समाधान यही हो सभी के, पास कोई कर्म ।

4
वारवधू न ही द्यूत सुजान,
मद्यपान न ही धूम्रपान,
इनसे रहना दूर सदैव, 
व्‍यसन नहीं यह है विषपान।

5
जीवन तो है रंगमंच, सब कठपुतली हैं।
सब करते अभिनय जीवंत और असली हैं।
सब अपनी पहचान बनाते अभिनय कर के,
सभी शिखर पहुँचें किस्‍मत सबकी बदली हैं।

6
छात्र परीक्षाओं में अकसर ताक-झाँक करते हैं,
पकड़े जाते करते नकलें आँक-बाँक करते हैं।
चोर करें निगरानी ताका-झाँकी सूने घर की,
चोरें चीजें तोड़ा-फोड़ी, फेंक-फाँक करते हैं ।

     


21 जून 2024

बचपन से ही करते आए, बाकी, गुणा, भाग अरु योग।

गीतिका
छंद- आल्‍ह
विधान- प्रति चरण मात्रा 31। 16, 15 (चौपाई+चौपई) पर यति  अंत गुरु-लघु से    

बचपन से ही करते आए, बाकी, गुणा, भाग अरु योग।
मनोयोग, सहयोग, योग से, मिटते देखे कितने रोग।

मिलजुल कर सहयोग रहे अरु मनोयोग से बढ़ती बुद्धि,
नहीं प्रयोग बिन शिक्षक करना, पड़ जाए ना करना सोग ।

सबसे अच्‍छा योग भ्रमण है, नित्‍य टहलिए प्रात:काल,
चाहे हो ना संगी साथी, हो तो बने सुखद संजोग।

‘अति सर्वत्र वर्जयेत’ कहें, करना कभी न सीमा पार,
स्‍वस्‍थ बदन के लिए मंत्र है, अतिशय नहीं व्‍यसन अरु भोग।

‘नीम हकीम, निरक्षर भट्टाचार्यों से बस बचना मित्र,
देते राय मिलेंगे ‘आकुल’, हर पथ गली-गली कुछ लोग। 

महफिल जमती शरबत से

 

नौ रस जग में पर शरबत रस का ना सानी।
गरमी में शरबत अमरित, मरुधर में पानी।   
ठंडक मिलती शरबत से।
 
अमरस, कट्ट, पना, ईखरस, लस्‍सी, छाछ
गर्मी में पीते ही इनको खिलती बाछ
नारंगी मौसम्‍बी फालसे और शिकंजी बेल    
शरबत के आगे हो जाते गोला चुसकी फेल

हर फल से बन जाता है शरबत आसानी।
लू ना लगती शरबत से
 
शरबत को महँगा करना हो उसे सजा दो
नीबू, द्राक्ष, खस गुलाबजल से महका दो
पहना दो कुछ मुकुट सरीखे फल के कटके
जाम में होता शरबत का प्रभाव ही हट के
 
श्‍रबत बन जाता है फिर शरबती रानी।
म‍हफिल जमती शरबत से   
 
स्‍वाद है जिह्वा तक अंदर तक असर करे
बर्फ से ठंडा शरबत गला तरबतर करे
ठंडाई, कुल्‍फी, का मौसम गरमी ‘आकुल’
शरबत तन में पूर्ति पानी की जबर करे
 
पल्‍प-चाशनी से बन जाता शरबत पानी।
रंगत बनती शरबत से

20 जून 2024

अब धरती को बंजर होने से बचाइए

छंद- शक्तिपूजा
विधान- 16, 8 पर यति अंत लघु गुरु/गुरु लघु/ लघु लघु लघु हो सकते हैं। यति के बाद अठकल हो।  
अपदांत
समांत- आइए

अब धरती को बंजर होने, से बचाइए ।
पानी जितना हो सकता है, कम बहाइ‍ए ।   

आग बरसती है अब  धरती, पर गर्मी में,
बना नालियाँ वृक्षों पौधों, को पिलाइए।

खूब पीजिए पानी कम ना, हो तन में जल,
हो काम तभी बाजार सुबह-शाम जाइए।

जल है तो जीवन है जल बिन, जल जाएगा,
जीवन  मुरझाए न जुगत ऐसी लगाइए ।

बाँधे खूब परिंडे भर दें पानी से नित,
पंछी आएँगे अपनापन, भी जताइए।

हर पथ पगडंडी पर हों अब, वृक्षावलियाँ,
वृक्षाच्‍छादित गाँव शहर हो, कर दिखाइए।          

अगर ठान ले तो क्‍या ना हो, सकता ‘आकुल’,
धरती को अब नंदन कानन, सा बनाइए।

 

17 जून 2024

न्‍याय, वसुधैवकुटुम्‍बकम्, आतिथ्य सदा संस्‍कृति हो

गीतिका
प्रदत्त छन्द- सखी
विधान- तीन चौकल + गुरु, पदपादाकुलक छन्द की लय
पदान्त- हो
समान्त- अति

दुर्योधन सी ना मति हो।
न महाभारत सी गति हो।11

सम्यक् दृष्टि, मधुर वाणी,
जीवनोद्देश्य उन्नति हो।2।

हो न प्रकृति संदेहास्पद,
सम्बन्धों की ना क्षति हो।3।

साहित्य, कला, संस्कृति में,
संगति से बनी नियति हो।4।

न्याय, वसुधैवकुटुम्बकम्,
आतिथ्य सदा संस्कृति हो।5।

हो मान्य गीतिका जग में,
अब कुछ ऐसी परिणति हो।6।

हिन्दी बने राष्ट्रभाषा,
’आकुल’ न और अब अति हो।7।

16 जून 2024

नारी अब भी श्रद्धा है

गीतिका
छंद- लीला 
विधान- 14, 10 पर यति, अंत सगण (112)
पदांत- करो
समांत- आर   


नारी अब भी श्रद्धा है, नव शृंगार करो।
बेमन क्‍यों मन से भी तुम, अंगीकार करो।

आँख बंद कर बाबुल ने, जिस घर बाँध दिया,
सब वारा घर पर तुम भी, साज सँभार करो।

स्‍वाभिमान की रक्षा हो, मान मिले न मिले,
चाहा न्‍याय न चाहा उस के अनुसार करो।

जो गुण तुम में कभी  न थे, अनुशीलन करना,
जन्‍मदात्री है, भरतारी, है परिहार करो।

घात और प्रतिघात सहे, घर की खातिर ही,
अब न सहेगी 'आकुल' मत, अत्‍याचार करो। 

 

10 जून 2024

बस बारिश हो जगती पर

छंद- शील (वर्णिक)
मापनी- 112 112 112 11
पदांत- पर
समांत- अती

अब आतिश सी सखती पर।
बस बारिश हो जगती पर।

अब धूप न राहत दे कुछ,
घर जंगल में बसती पर।

लगता यह जीवन शापित,
रहते धरती तपती पर।

मजदूर नहीं रुकते क्षण
करते श्रम हैं नपती पर।

अब मेघ करें नित बारिश
हद गर्म हवा चलती पर,

वश में यह मानव के खुद,
यदि रोक सके गलती पर।

हर ओर चले मलयानिल,
नवकानन हों धरती पर।


9 जून 2024

गर्मी का आनंद उठाएँ इस मौसम में

 

गीतिका 
छंद- सार्द्ध चौपाई
पदांत- इस मौसम में
समांत- आएँ

चलो चलो सब मौज उड़ाएँ, इस मौसम में।
गर्मी का आनंद उठाएँ, इस मौसम में।1

हर मौसम के होते सुख-दुख, अपने-अपने,
एक-एक कर खुशी जुटाएँ, इस मौसम में।2

कुल्फी, फालूदा, ठंडाई, गोला, चुस्की,
तरणताल में तैरें जाएँ, इस मौसम में।3

खरबूजा, तरबूज, फालसे, लाएँ खिरनी,
मंडी जा कर आम तुलाएँ, इस मौसम में।4

इस मौसम में आम न खाया तो क्या खाया,
लँगड़ा, केसर, हापुस खाएँ, इस मौसम में।5

कूलर, एसी, छाया, पंखा, ठंडा पानी,
शरबत से सब प्यास बुझाएँ, इस मौसम में।6

जाते जाते गरमी को भी, भेंट करें सब,
मिलजुल कर सब पौद उगाएँ, इस मौसम में।7

हवा धूप तेवर दिखलाएँ इस मौसम में

 गीतिका

छंद- सार्द्ध चौपाई

हवा धूप तेवर दिखलाएँ, इस मौसम में।
आँँधी अंधड़ चलें डराएँ, इस मौसम में।

गर्मी कहर ढा रही श्रेयस, है अब बचना,
रातों में भी लाय सताएँ, इस मौसम में।

लस्सी, छाछ, आम, ईखरस, शरबत पीना,
ये तन को ठंडक पहुँचाएँ, इस मौसम में।

बाहर बच्चों को भेजें पर, पूर्ण सुरक्षित,
बहुत जरूरी हो सँग जाएँ, इस मौसम में।

सुबह-शाम ही करने जाएँ, खरीददारी,
ऑनलाइन माल मँगवाएँ, इस मौसम में।

स्वस्थ रहें गर्मी में भोजन, करना हल्का,
जीवन को ना दाँव लगाएँ, इस मौसम में।

रक्तचाप ना बढ़े न हो तन, में कम पानी,
जान बचे तो लाखों पाएँ, इस मौसम में।