16 जून 2024

नारी अब भी श्रद्धा है

गीतिका
छंद- लीला 
विधान- 14, 10 पर यति, अंत सगण (112)
पदांत- करो
समांत- आर   


नारी अब भी श्रद्धा है, नव शृंगार करो।
बेमन क्‍यों मन से भी तुम, अंगीकार करो।

आँख बंद कर बाबुल ने, जिस घर बाँध दिया,
सब वारा घर पर तुम भी, साज सँभार करो।

स्‍वाभिमान की रक्षा हो, मान मिले न मिले,
चाहा न्‍याय न चाहा उस के अनुसार करो।

जो गुण तुम में कभी  न थे, अनुशीलन करना,
जन्‍मदात्री है, भरतारी, है परिहार करो।

घात और प्रतिघात सहे, घर की खातिर ही,
अब न सहेगी 'आकुल' मत, अत्‍याचार करो। 

 

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