22 जून 2024

कुछ मुक्‍तक

1
शब्‍द-शब्द नि:सृत रहता माँ, सदा रहे आशीष।   
जब जब भी आभास हुआ माँ, सदा रहे आशीष।
बहती रहे सदा अनुशासित, शांत काव्‍य की धार,  
बनूँ न चंट कीश सदृश माँ, सदा रहे आशीष।

2
मनुहार होता है मनोहर, प्रेम का शृंगार।
मधुमास में हो समर्पण से, प्रकृति का शृंगार ।
दान और अनुदान धर्म के, ज्यों आधार स्‍तम्‍भ, 
इनके बिना न हो जीवन में, धर्म का शृंगार।

3
आज बोलने सुनने, कहने, का नहीं है धर्म।
बुजुर्गों का अपमान भी करने में नहीं शर्म।
आक्रोश नव पीढ़ी में कहाँ, से आया हे राम!
समाधान यही हो सभी के, पास कोई कर्म ।

4
वारवधू न ही द्यूत सुजान,
मद्यपान न ही धूम्रपान,
इनसे रहना दूर सदैव, 
व्‍यसन नहीं यह है विषपान।

5
जीवन तो है रंगमंच, सब कठपुतली हैं।
सब करते अभिनय जीवंत और असली हैं।
सब अपनी पहचान बनाते अभिनय कर के,
सभी शिखर पहुँचें किस्‍मत सबकी बदली हैं।

6
छात्र परीक्षाओं में अकसर ताक-झाँक करते हैं,
पकड़े जाते करते नकलें आँक-बाँक करते हैं।
चोर करें निगरानी ताका-झाँकी सूने घर की,
चोरें चीजें तोड़ा-फोड़ी, फेंक-फाँक करते हैं ।

     


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