सहमी छिपती फिरती है
क्यों, नारी तू तो वरदा है।1।
तू स्वभाव से ही
श्रद्धा है, तुझे करें क्यों अपमानित,
वंशाध्यायी को समझें
क्यों, लगी फसल में हरदा1 है।2।
सीख सके तो सीख निडर
हो, आत्मसुरक्षा का गुर तू,
बन जा फिर काली
दुर्गा जो समझें तुझको करदा2 है।3।
तुझको ना छिपना है अब
तू, पढ़ इतिहासों के पन्ने,
धूल चटा उन नरदारों
को, जो समझें तू गरदा3 है।4।
आज नारियाँ पुजती हैं
सब, शिक्षित हो कर जो निकलीं,
निर्झर बनना है ‘आकुल’ तू नहीं घरों की नरदा4
है।5।
1. हरदा-
फसल में लगा एक रोग 2. करदा- कूड़ा-कर्कट 3. गरदा- धूल-मिट्टी 4. नरदा- नाली,
पनाला
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