10 जून 2024

बस बारिश हो जगती पर

छंद- शील (वर्णिक)
मापनी- 112 112 112 11
पदांत- पर
समांत- अती

अब आतिश सी सखती पर।
बस बारिश हो जगती पर।

अब धूप न राहत दे कुछ,
घर जंगल में बसती पर।

लगता यह जीवन शापित,
रहते धरती तपती पर।

मजदूर नहीं रुकते क्षण
करते श्रम हैं नपती पर।

अब मेघ करें नित बारिश
हद गर्म हवा चलती पर,

वश में यह मानव के खुद,
यदि रोक सके गलती पर।

हर ओर चले मलयानिल,
नवकानन हों धरती पर।


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