गीतिका
छंद- आल्ह
विधान- प्रति चरण मात्रा 31। 16, 15 (चौपाई+चौपई)
पर यति अंत गुरु-लघु से
बचपन से ही करते आए, बाकी,
गुणा, भाग अरु योग।
मनोयोग, सहयोग, योग से, मिटते देखे कितने रोग।
मिलजुल कर सहयोग रहे अरु मनोयोग से बढ़ती बुद्धि,
नहीं प्रयोग बिन शिक्षक करना, पड़ जाए ना करना सोग ।
सबसे अच्छा
योग भ्रमण है, नित्य टहलिए प्रात:काल,
चाहे हो ना
संगी साथी, हो तो बने सुखद संजोग।
‘अति
सर्वत्र वर्जयेत’ कहें, करना कभी न सीमा पार,
स्वस्थ
बदन के लिए मंत्र है, अतिशय नहीं व्यसन अरु भोग।
‘नीम हकीम,
निरक्षर भट्टाचार्यों से बस बचना मित्र,
देते
राय मिलेंगे ‘आकुल’, हर पथ गली-गली कुछ लोग।
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