छंद- शक्तिपूजा
अपदांत
समांत- आइए
अब धरती को बंजर होने, से बचाइए ।
पानी जितना हो सकता है, कम बहाइए ।
आग बरसती है अब धरती, पर गर्मी में,
बना नालियाँ वृक्षों पौधों, को पिलाइए।
हो काम तभी बाजार सुबह-शाम जाइए।
जल है तो जीवन है जल बिन, जल जाएगा,
जीवन मुरझाए न जुगत ऐसी लगाइए ।
बाँधे खूब परिंडे भर दें पानी से नित,
पंछी आएँगे अपनापन, भी जताइए।
हर पथ पगडंडी पर हों अब, वृक्षावलियाँ,
वृक्षाच्छादित गाँव शहर हो, कर दिखाइए।
अगर ठान ले तो क्या ना हो, सकता ‘आकुल’,
धरती को अब नंदन कानन, सा
बनाइए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें