गीतिका
(लावणी छंद) सम मात्रिक छंद (16-14)
(लावणी छंद) सम मात्रिक छंद (16-14)
कर्म पथिक जो होना है तो, कर्मनिष्ठ बनना होगा।
सत्यजीत जो होना है तो, सत्यनिष्ठ बनना होगा।
कंटकीर्ण होती हैं राहें, दिखे दूर गंतव्य बहुत,
कुछ विशिष्ठ जो होना है तो, उभयनिष्ठ बनना होगा।
ऋतुओं के अभिनव शृंगार, नैसर्गिक पहने धरती,
मर्यादित जो होना है तो, भव्यनिष्ठ बनना होगा।
त्रयम्बकेश्वर हालाहल पी, बन बैठे संकटमोचक,
इंद्रियजित जो होना है तो, वेद पृष्ठ बनना होगा।
‘आकुल’ प्रतिरोधों की ज्वाला, में तप कर निखरे सोना,
कुल किरीट जो होना है तो, गुरु वशिष्ठ बनना होगा।
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