1
दीपपर्व आया है सौ-सौ हाथ बढ़ाओं।
गले मिलो, उठ-बैठ करो, सम्वाद बढ़ाओ।
भेद-भाव, वि़द्वेष, मलिनता, कटुता सारी,
भूलो, जा कर घर-घर, बस सौहार्द बढ़ाओ।
2
दीप ज्योत है, दीप आस है, दीप है प्रीत उजास।
दीप सवेरा, दीप साँँझ है, दीप प्रेम' अरदास।
दीप करे निर्वाण तमस का, दीप करे उजियार,
दीप सभ्यता, दीप संस्कृति, दीप धर्म विन्यास।
3
तम को मिटाने फिर से आ रही है दिवाली।
घर-घर खुशी से झूमे, मने ऐसी दिवाली।
कुछ ऐसा करो अब, अँधेरा छाने ना पाए,
इस साल एक उदाहरण बन जाए दिवाली।
4
हर दिन बसंत शाम हर दिवाली मनाएॅं।
सुख-चैन की हवा बहे, तुफाँँ न सताएँँ।
आलोक चारों ओर फैलाए, सरस्वती,
देव सब संस्कार का प्रकाश फैलाएँँ।
दीपपर्व आया है सौ-सौ हाथ बढ़ाओं।
गले मिलो, उठ-बैठ करो, सम्वाद बढ़ाओ।
भेद-भाव, वि़द्वेष, मलिनता, कटुता सारी,
भूलो, जा कर घर-घर, बस सौहार्द बढ़ाओ।
2
दीप ज्योत है, दीप आस है, दीप है प्रीत उजास।
दीप सवेरा, दीप साँँझ है, दीप प्रेम' अरदास।
दीप करे निर्वाण तमस का, दीप करे उजियार,
दीप सभ्यता, दीप संस्कृति, दीप धर्म विन्यास।
3
तम को मिटाने फिर से आ रही है दिवाली।
घर-घर खुशी से झूमे, मने ऐसी दिवाली।
कुछ ऐसा करो अब, अँधेरा छाने ना पाए,
इस साल एक उदाहरण बन जाए दिवाली।
4
हर दिन बसंत शाम हर दिवाली मनाएॅं।
सुख-चैन की हवा बहे, तुफाँँ न सताएँँ।
आलोक चारों ओर फैलाए, सरस्वती,
देव सब संस्कार का प्रकाश फैलाएँँ।
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