****
मेरा भारत तीज
और त्योहारों का है देस।
अक्षुण्ण बनी
सभ्यता और संस्कारों का है देस।
दिन दूना और
रात चौगुना बढ़ता जाता प्रेम,
ढाई अाखर
सिद्ध यह दशावतारों का है देस।
परदेस -
******
क्यों जाते
परदेस छोड़ कर अपनी माटी।
अपना घर, कुल, मर्यादा, अपनी परिपाटी।
अपने घर का
नमक बोलता है सुख-दुख में,
फूल बनी घड़ियाँ जब-जब संकट की काटी।
फूल बनी घड़ियाँ जब-जब संकट की काटी।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें