1 अक्तूबर 2016

माँँ पर मुक्‍तक


माँँ 

मधुबन माँँ की छाँँव है, निधिवन माँँ की ओज।
काशी मथुरा द्वारिका, दर्शन माँँ के रोज।
आँँचल हैै गोदावरी, गंगाजल सा क्षीर,
भोजन माँँ के हाथ का, राजभोग का भोज।1।


मात-पिता-गुरु-राष्‍ट्र हैं, जीवन का आधार।
शिक्षा-संंस्‍कृति इन्‍हीं से, इनसे है संसार।
मात-पिता-गुरु ही करें, जीवन मार्ग प्रशस्‍त,
राष्‍ट्र बनाता नागरिक, जग करता स्‍वीकार।2।




माँँ नवदुर्गा 

माँँ नवदुर्गा 
अब न डरें आ गई है, माँँ दुर्गा अब धाम।
असुरों का अब मूल से, करने काम तमाम।
अवतारित होंगे प्रभू, धरती पर ले रूप,
रावण को संहारने, अब पुरुषोत्‍तम राम।3।


दुर्गा के नवरूप हैं, पूजें सुबहो शाम।
भक्ति करें सौहार्द से, मिलिए सुबहो शाम।
माँँ के दर्शन मेें दिखें, नित्‍य नए नवरूप,
अब नवरात्र मनाइये, सुख से सुबहो शाम।4।


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