गीतिका
छन्द- रास
पदांत- ही होगा
बालाओं को आज पढ़ाना, ही होगा।
क्यों आवश्यक राज़ बताना, ही होगा।
घर या बाहर देखरेख अब, हो पूरी,
पहली आदत आज बनाना ही होगा।
आत्मसुरक्षा की तकनीकें, आज सभी,
बचपन से हर हाल सिखाना ही होगा
शिक्षित हों सब जन जाग्रति की, हाथों में,
क्रांति मशालें आज जलाना, ही होगा।
अपरिहार्य हालातों, चाहे, मजबूरी,
संग रखें या जुगत लगाना, ही होगा।
गिद्ध दृष्टि, ना पड़े शृगालों, की उन पर,
उनका नाम निशान मिटाना, ही होग।
शिक्षा की लौ जले अनवरत, अब ‘आकुल’,
आज एक इतिहास रचाना, ही होगा।
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