गीतिका
छन्द- निश्चल
पदान्त-0
समान्त- आन
दृष्टि तभी जाएगी उनका, हो गुणगान।
कर लें गणना घर या बाहर, कितनी व्यस्त,
जिम्मेदारी से जाएगा, उन पर ध्यान।
जितना काम प्रमुख उतना ही, घर-कुटुम्ब,
शीर्ष प्रबन्धन में रहती वह, सदा प्रधान।
नारी का सर्वोपरि रहता, संचय
शोध,
सदा निरर्थक खर्चों का, रहता है भान।
नारी पर अति से ही आए, घने प्रकोप,
फलत: भूतकाल ने लिक्खे, नए विधान।
वर्तमान फिर देख रहा है, नारी क्लेश,
कोरोना काल सदृश ना हो, फिर बलिदान।
अब विज्ञान करे नारी पर, अनुसांधान,
क्यों संसार धरा को माने, मातृ समान।
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