गीतिका
छन्द – इंदिरा / राजहंसी (वार्णिक)
विधान- 111 212 212 12 (नगण रगण रगण लघु गुरु)
समान्त-
आर
हृदय
में कभी यूँ विचार हो ।
चमन
में सदा ही बहार हो ।
अब
विनाश की आँधियाँ रुकें,
पहल
हो किसी भी प्रकार हो,
शपथ
लें सभी वृक्ष रोपना,
पथ गली लगे यूँ विहार हो।
नगर
गाँव में हो मुनादियाँ,
अरु
प्रचार भी बार बार हो।
मनुज
ही बनाता उजाड़ता,
प्रकृति
से पुन: आज प्यार हो।
अगर चाह हो राह है वहाँ,
धुन
सवार हो एतबार हो।
इक
सलाह है यूँ सुधार की,
जबर जंग हो आर-पार हो।
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