5 फ़रवरी 2024

पतंग ही पतंग

 बाल कविता

हैं पतंग ही पतंग ।।  

उड़ रही हैं पतंग

नभ भी है आज दंग

जैसे नभ पे हैं जंग

छोटे बड़े सभी संग

सभी मन में उमंग

लिए तन में तरंग

कई रंगों में पतंग

कई ढंग की पतंग

दूर कटती पतंग
पतंग ही पतंग 
कहीं झूमती पतंग  

हैं पतंग ही पतंग ।।  

कोई दौड़े ले पतंग

कोई काटे है पतंग

कोई जोड़े है पतंग

कोई फाड़े है पतंग

फँसी पेड़ों में पतंग

गिरी छत पे पतंग

छोर वाली हैं पतंग

पूँछ वाली हैं पतंग

दुखी कटे जो पतंग

खुश काटे जो पतंग

हैं पतंग ही पतंग।।

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