गीतिका
छंद- रास
पदांत- 0
समांत- आरी
शिक्षा संस्कृति कला खेल में, है न्यारी।
कोई क्षेत्र न बचा ¡जहा वह ना शामिल,
लोहा मनवाती अब उसकी छवि
भारी।
धन वैभव, में अव्वल नेत्री, अभिनेत्री,
फर्श से अर्श है पहुँची वह है, अधिकारी।
प्रथम नागरिक बन कर भी चौंकाया है,
अब इसको कह मत करना त्रुटि, बेचारी।
कोख उजाड़ी, बचपन लूटा, कर विकृत,
नारी का अब धैर्य न छूटे इस बारी।
प्रकृति साथ होगी जिस दिन भी, नारी के,
रूप विराट दिखाएगी कर, तैयारी।
इससे ज्यादा क्यो होगी अति, धरती पर,
नारी ना बन जाए इक दिन, अवतारी।
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