5 मार्च 2024

धूप शाखों में अभी गहरी हुई है

गीतिका
छन्द- पीयूष निर्झर
मापनी- 2122 2122 2122
पदांत- हुई है
समांत- अहरी
धूप शाखों पे अभी गहरी हुई है।
झील आँखों में अभी ठहरी हुई है।1।
आ रही आहट बहारों की चमन में,
अब बयारों से खिजाँ सिहरी हुई है।2।
साँझ धुँधली लौटते घर को पखेरू,
शाम गोधूली से' सुनहरी हुई है।3।
हैं घरों से देहरी जब से नदारद,
नारियों पे दृष्टि अब जहरी हुई है।4।
अब नहीं गाँवों घरों में सादगीपन,
अब रहनगत गाँव की शहरी हुई है।5।
अब नहीं रिश्तों में' बाकी गर्मियाँ हैं,
औपचारिकता महज पहरी हुई है।6।
जिंदगी हर हाल जीते, दान दे कर,
मौत अंधी, मूक अरु बहरी हुई है।7।

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