गीतिका
छंद- चौपाई
पदांत- 0
समांत- ओजा
ऐ कविता तू अब खुश हो जा.
माँग न मन्नत मत रख रोजा.
तू ही मिली चले जिस पथ पर
जिसने तुझको जब भी खोजा.
तेरा तो अपना साहिल है
अन्य विधा का अपना मौजा
तूने उनको दिये उजाले
तू अब भी है शमे-फरोज़ा
नारी रूप दिया निसर्ग ने
अब तू स्वर्ग सरीखी हो जा
मुक्तछंद में गाते तुझको
लोकगीत लेकर अलगोजा.
तुझसे मंच सभी ने लूटा,
और भरा है अपना गोजा.
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना आदरणीय।
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